दिन आ गए शबाब के आँचल सँभालिये
होने लगी है शहर में हलचल सँभालिये
चलिए सँभल सँभल के कठिन राह-ए-इश्क़ है
नाज़ुक बड़ी है आप की पायल सँभालिये
सज-धज के आप निकले सर-ए-राह ख़ैर हो
टकरा न जाए आप का पागल सँभालिये
घर से न जाओ दूर किसी अजनबी के साथ
बरसेंगे ज़ोर ज़ोर से बादल सँभालिये
ग़ज़ल
दिन आ गए शबाब के आँचल सँभालिये
मदन पाल