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दिन आ गए शबाब के आँचल सँभालिये | शाही शायरी
din aa gae shabab ke aanchal sambhaaliye

ग़ज़ल

दिन आ गए शबाब के आँचल सँभालिये

मदन पाल

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दिन आ गए शबाब के आँचल सँभालिये
होने लगी है शहर में हलचल सँभालिये

चलिए सँभल सँभल के कठिन राह-ए-इश्क़ है
नाज़ुक बड़ी है आप की पायल सँभालिये

सज-धज के आप निकले सर-ए-राह ख़ैर हो
टकरा न जाए आप का पागल सँभालिये

घर से न जाओ दूर किसी अजनबी के साथ
बरसेंगे ज़ोर ज़ोर से बादल सँभालिये