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दिमाग़-ओ-दिल में हलचल हो रही है | शाही शायरी
dimagh-o-dil mein halchal ho rahi hai

ग़ज़ल

दिमाग़-ओ-दिल में हलचल हो रही है

अशफ़ाक़ रशीद मंसूरी

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दिमाग़-ओ-दिल में हलचल हो रही है
नदी यादों की बे-कल हो रही है

तू अपने फ़ेस को ढँक कर निकलना
नगर में धूप पागल हो रही है

तुम्हारी याद का डाका पड़ा है
हमारी ज़ीस्त चंबल हो रही है

अभी तो शौक़ से फाड़ा है दामन
अभी तो बस रीहरसल हो रही है

तिरी आँखों पे चश्मा गैर का है
मिरी तस्वीर ओझल हो रही है