दिमाग़-ओ-दीदा-ओ-दिल बर-सर-ए-पैकार होते हैं
मोहब्बत की कहानी में कई किरदार होते हैं
ये दुनिया बाग़-ए-ज़ेबा है मगर चश्म-ए-तमाशा में
सर-ए-शाख़-ए-तमन्ना फूल भी दो-चार होते हैं
किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते
कि अफ़्साने मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार होते हैं
ख़यालों में कहीं नग़्मा कहीं ग़ुंचा कहीं सहबा
दम-ए-नज़्ज़ारा ये नाज़ुक बदन तलवार होते हैं
किसी पुर-पेच रस्म-ए-दोस्ती का मा-हसल ये है
घनेरे जंगलों के रास्ते हमवार होते हैं
सफ़ाई से कहो जो कुछ कहो क्यूँ ज़ख़्म धोते हो
मसीहा कह के हम क़ातिल के जानिब-दार होते हैं
ग़ज़ल
दिमाग़-ओ-दीदा-ओ-दिल बर-सर-ए-पैकार होते हैं
सय्यद अमीन अशरफ़