दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
वो सब्र है अभी नुक़सान भी ज़ियादा नहीं
वो एक हाथ बढ़ाएगा तुझ को पा लेगा
सो देख सब्र का एलान भी ज़ियादा नहीं
हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर
वो जान-ए-जाँ तो परेशान भी ज़ियादा नहीं
तमाम इश्क़ की मोहलत है उस आँखों में
और एक लमहा-ए-इमकान भी ज़ियादा नहीं
ग़ज़ल
दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं
विपुल कुमार