दिलों पर ख़ौफ़ भी तारी बहुत है
मगर जंगों की तय्यारी बहुत है
ख़िरद की बस्तियों के फूँकने को
जुनूँ की एक चिंगारी बहुत है
सभी ज़द में हैं दश्त-ओ-कोह-ओ-इंसाँ
ये ज़र्ब-ए-वक़्त है कारी बहुत है
पुराना ख़ुश्क पत्ता कह रहा था
हवा में तेज़-रफ़्तारी बहुत है
हम अपने दिल की दुनिया देखते हैं
हमें ये शग़्ल-ए-बेकारी बहुत है
चले हो उस से मिलने पर ये सुन लो
उसे शौक़-ए-दिल-आज़ारी बहुत है
नहीं है साथ रहना गरचे आसाँ
बिछड़ने में भी दुश्वारी बहुत है
ग़ज़ल
दिलों पर ख़ौफ़ भी तारी बहुत है
असअ'द बदायुनी