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दिलों के रंग अजब राब्ता है कितनी देर | शाही शायरी
dilon ke rang ajab rabta hai kitni der

ग़ज़ल

दिलों के रंग अजब राब्ता है कितनी देर

मज़हर इमाम

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दिलों के रंग अजब राब्ता है कितनी देर
वो आश्ना है मगर आश्ना है कितनी देर

नई हवा है करें मिशअल-ए-हवस रौशन
कि शम्-ए-दर्द चराग़-ए-वफ़ा है कितनी देर

अब आरज़ू को तिरी बे-सदा भी होना है
तिरे फ़क़ीर के लब पर दुआ है कितनी देर

अब उस को सोचते हैं और हँसते जाते हैं
कि तेरे ग़म से तअल्लुक़ रहा है कितनी देर

है ख़ुश्क चश्मा-ए-सहरा मरीज़ वादी ओ कोह
निगार-ख़ाना-ए-आब-ओ-हवा है कितनी देर

ठिठुरते फूल पे तस्वीर-ए-रंग-ओ-बू कब तक
झुलसती शाख़ पे बर्ग-ए-हिना है कितनी देर