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दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम | शाही शायरी
dilli ke bich hae akele marenge hum

ग़ज़ल

दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम

आबरू शाह मुबारक

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दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
तुम आगरे चले हो सजन क्या करेंगे हम

यूँ सोहबतों कूँ प्यार की ख़ाली जो कर चले
ऐ मेहरबान क्यूँकि कहूँ दिन फिरेंगे हम

जिन जिन को ले चले हो सजन साथ उन समेत
हाफ़िज़ रहे ख़ुदा के हवाले करेंगे हम

भूलोगे तुम अगरचे सदा रंग-जी हमें
तो नाँव बैन-बैन के तुम को धरेंगे हम

इख़्लास में कता है तुम्हें 'आबरू' अभी
आए न तुम शिताब तो तुम सीं लड़ेंगे हम