दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
तुम आगरे चले हो सजन क्या करेंगे हम
यूँ सोहबतों कूँ प्यार की ख़ाली जो कर चले
ऐ मेहरबान क्यूँकि कहूँ दिन फिरेंगे हम
जिन जिन को ले चले हो सजन साथ उन समेत
हाफ़िज़ रहे ख़ुदा के हवाले करेंगे हम
भूलोगे तुम अगरचे सदा रंग-जी हमें
तो नाँव बैन-बैन के तुम को धरेंगे हम
इख़्लास में कता है तुम्हें 'आबरू' अभी
आए न तुम शिताब तो तुम सीं लड़ेंगे हम
ग़ज़ल
दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
आबरू शाह मुबारक