दिलबर कहा रफ़ीक़ कहा चारागर कहा 
जो कुछ भी तुम को हम ने कहा सोच कर कहा 
वो तुम कि हम को आज भी मुख़्लिस न कह सके 
और हम ने सारी उम्र तुम्हें मो'तबर कहा 
ये रौनक़ें जहान की मंसूब तुम से कीं 
फिर उन तजल्लियों को हरीम-ए-नज़र कहा 
पुर्सिश तिरी फ़रेब तसल्ली तिरी फ़रेब 
वो दिल की बात थी जिसे दुनिया का डर कहा 
तेरे नुक़ूश-ए-पा को बताया है कहकशाँ 
तेरी गली के ज़र्रों को शम्स-ओ-क़मर कहा 
सब मुतमइन थे देख के आज़ादियाँ मिरी 
मेरे ज़मीर ने मुझे बे-बाल-ओ-पर कहा 
उन पर तो कोई हर्फ़ न आने दिया 'ज़िया' 
जो गुज़री उस को गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर कहा
        ग़ज़ल
दिलबर कहा रफ़ीक़ कहा चारागर कहा
बख़्तियार ज़िया

