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दिलबर कहा रफ़ीक़ कहा चारागर कहा | शाही शायरी
dilbar kaha rafiq kaha chaaragar kaha

ग़ज़ल

दिलबर कहा रफ़ीक़ कहा चारागर कहा

बख़्तियार ज़िया

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दिलबर कहा रफ़ीक़ कहा चारागर कहा
जो कुछ भी तुम को हम ने कहा सोच कर कहा

वो तुम कि हम को आज भी मुख़्लिस न कह सके
और हम ने सारी उम्र तुम्हें मो'तबर कहा

ये रौनक़ें जहान की मंसूब तुम से कीं
फिर उन तजल्लियों को हरीम-ए-नज़र कहा

पुर्सिश तिरी फ़रेब तसल्ली तिरी फ़रेब
वो दिल की बात थी जिसे दुनिया का डर कहा

तेरे नुक़ूश-ए-पा को बताया है कहकशाँ
तेरी गली के ज़र्रों को शम्स-ओ-क़मर कहा

सब मुतमइन थे देख के आज़ादियाँ मिरी
मेरे ज़मीर ने मुझे बे-बाल-ओ-पर कहा

उन पर तो कोई हर्फ़ न आने दिया 'ज़िया'
जो गुज़री उस को गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर कहा