दिल यार की गली में कर आराम रह गया
पाया जहाँ फ़क़ीर ने बिसराम रह गया
किस किस ने उस के इश्क़ में मारा न दम वले
सब चल बसे मगर वो दिल-आराम रह गया
जिस काम को जहाँ में तू आया था ऐ 'नज़ीर'
ख़ाना-ख़राब तुझ से वही काम रह गया
ग़ज़ल
दिल यार की गली में कर आराम रह गया
नज़ीर अकबराबादी