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दिल उन की याद से जो बहलता चला गया | शाही शायरी
dil unki yaad se jo bahalta chala gaya

ग़ज़ल

दिल उन की याद से जो बहलता चला गया

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

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दिल उन की याद से जो बहलता चला गया
ग़म आप अपनी आग में जलता चला गया

तू ला-मकाँ है तो मिरी मंज़िल भी बे-निशाँ
तेरे लिए चला तो मैं चलता चला गया

काँटे जहाँ जहाँ पे मिले राह-ए-इश्क़ में
दामन बचा बचा के निकलता चला गया

नाकामियों से कम न हुआ हौसला मिरा
ठोकर लगी तो और सँभलता चला गया

मौजों के रुख़ को फेर दिया मैं ने बारहा
तूफ़ाँ का सर उठा तो कुचलता चला गया

ये जान कर कि ग़म है तिरी याद का सबब
मैं हर ख़ुशी को ग़म से बदलता चला गया

अहल-ए-ज़माना गर्द को मेरी न पा सके
हर क़ाफ़िले से दूर निकलता चला गया

अश्या हैं 'बर्क़' सिलसिला-ए-वहदत-उल-वजूद
सौ सौ तरह से नाम बदलता चला गया