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दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है | शाही शायरी
dil uchkegi ki bikhri hai aDi hai

ग़ज़ल

दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है

बयान मेरठी

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दिल उचकेगी कि बिखरी है अड़ी है
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

छुपेगा कब हमारा ख़ून-ए-नाहक़
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

कहीं बाद-ए-सबा आगे न धर ले
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

अदू इस रेस्माँ से सर न चढ़ जाए
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

कमंद इस घात से फेंकी है किस पर
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

किसी का ख़ून-ए-नाहक़ सर न हो जाए
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

जफ़ाएँ मू-ब-मू आती हैं आगे
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

उड़ाया दिल गिरह कतरेगी क्या और
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

ग़ज़ब था सामना तर्क-ए-नज़र का
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

किसी का ख़ून गर्दन पर न चढ़ जाए
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

'बयाँ' कम थी हमारी तीरा-बख़्ती
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है