दिल तो इक शख़्स को नख़चीर बनाने में गया
साज़-ए-दिल नग़्मा-ए-दिल-गीर बनाने में गया
रात इक ख़्वाब जो देखा तो हुआ ये मालूम
दिन भी उस ख़्वाब की तस्वीर बनाने में गया
परतव-ए-ख़ाना-ए-मौहूम ग़नीमत था मगर
वो भी इक नक़्शा-ए-तामीर बनाने में गया
रूह तो रूह है कुछ बस नहीं इस पर लेकिन
ये बदन ख़ाक को इक्सीर बनाने में गया
यार तो दिरहम ओ दीनार बनाने में गए
और मैं इश्क़ की जागीर बनाने में गया
शेर तासीर से ख़ाली हुआ वक़्त-ए-ताबीर
नफ़्स-ए-मज़मून भी तक़रीर बनाने में गया
ग़ज़ल
दिल तो इक शख़्स को नख़चीर बनाने में गया
महताब हैदर नक़वी