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दिल तिरी याद में हर लम्हा तड़पता भी नहीं | शाही शायरी
dil teri yaad mein har lamha taDapta bhi nahin

ग़ज़ल

दिल तिरी याद में हर लम्हा तड़पता भी नहीं

एहतिशाम हुसैन

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दिल तिरी याद में हर लम्हा तड़पता भी नहीं
बंद हो जाए तड़पना ये गवारा भी नहीं

वो नहीं पास तो एहसास-ए-रिफ़ाक़त है सिवा
ग़म-ए-तन्हाई के ज़िंदाँ में मैं तन्हा भी नहीं

दश्त दीवानों से आबाद हुए जाते हैं
अब तो जागीर किसी क़ैस की सहरा भी नहीं

संग-ए-दुश्नाम बरसते रहे हर जानिब से
सख़्त-जाँ दिल ही कुछ ऐसा था कि टूटा भी नहीं

कर तो लूँ तर्क-ए-तमन्ना का इरादा लेकिन
क़हर ये है वो फ़ुसूँ-गर सितम-आरा भी नहीं

रंग क्यूँ उड़ गया गुलशन के हवा-दारों का
गर्म झोंका कोई इस राह से गुज़रा भी नहीं

सर्द है मर्ग-सिफ़त मिस्र-ए-जुनूँ का बाज़ार
ख़्वाब-ए-यूसुफ़ भी नहीं ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा भी नहीं