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दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए | शाही शायरी
dil tere taghaful se KHabar-dar na ho jae

ग़ज़ल

दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए

सीमाब अकबराबादी

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दिल तेरे तग़ाफ़ुल से ख़बर-दार न हो जाए
ये फ़ित्ना कहीं ख़्वाब से बेदार न हो जाए

मुद्दत से यही पर्दा यही पर्दा-दरी है
हो कोई तो पर्दे से नुमूदार न हो जाए

मुझ से मिरा अफ़्साना-ए-माज़ी न सुनो तुम
अफ़्साना नया फिर कोई तय्यार न हो जाए

ऐ मस्ती-ए-उल्फ़त सबक़-ए-कुफ़्र दिए जा
जब तक मुझे हर चीज़ से इंकार न हो जाए

होना है जो हस्ती को मिरी ख़ाक ही 'सीमाब'
पहले ही से क्यूँ ख़ाक-ए-दर-ए-यार न हो जाए