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दिल तड़प जाए न क्यूँ सुन कर फ़ुग़ान-ए-अहल-ए-दर्द | शाही शायरी
dil taDap jae na kyun sun kar fughan-e-ahl-e-dard

ग़ज़ल

दिल तड़प जाए न क्यूँ सुन कर फ़ुग़ान-ए-अहल-ए-दर्द

शफ़क़ इमादपुरी

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दिल तड़प जाए न क्यूँ सुन कर फ़ुग़ान-ए-अहल-ए-दर्द
उन से पूछो जो समझते हैं ज़बान-ए-अहल-ए-दर्द

एक से इक बढ़ के है दिलचस्प दिलकश दिल-सिताँ
हाल-ए-दिल अफ़्साना-ए-ग़म दास्तान-ए-अहल-ए-दर्द

ये तो कहिए मुँह से इक उफ़ तक किसी ने की कभी
ले चुके हैं आप अक्सर इम्तिहान-ए-अहल-ए-दर्द

हाथ धो ले जान से कोई तो जी भर कर सुने
जाँ-सितान-ए-अहल-ए-दिल है दास्तान-ए-अहल-ए-दर्द

किस के आगे दर्द-ए-दिल अपना कहोगे तुम 'शफ़क़'
कोई दुनिया में नहीं अब क़द्र-दान-ए-अहल-ए-दर्द