दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है
है ज़ौक़-ए-तजल्ली भी इसी ख़ाक में पिन्हाँ
ग़ाफ़िल तू निरा साहिब-ए-इदराक नहीं है
वो आँख कि है सुर्मा-ए-अफ़रंग से रौशन
पुरकार ओ सुख़न-साज़ है नमनाक नहीं है
क्या सूफ़ी ओ मुल्ला को ख़बर मेरे जुनूँ की
उन का सर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है
कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मिरी ख़ाक
या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है
बिजली हूँ नज़र कोह ओ बयाबाँ पे है मेरी
मेरे लिए शायाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है
आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जाँबाज़ की मीरास
मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है
ग़ज़ल
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
अल्लामा इक़बाल