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दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच | शाही शायरी
dil si chiz ke gahak honge do ya ek hazar ke bich

ग़ज़ल

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच

इब्न-ए-इंशा

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दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच
'इंशा' जी क्या माल लिए बैठे हो तुम बाज़ार के बीच

पीना-पिलाना ऐन गुनह है जी का लगाना ऐन हवस
आप की बातें सब सच्ची हैं लेकिन भरी बहार के बीच

ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच

ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच

मिन्नत-ए-क़ासिद कौन उठाए शिकवा-ए-दरबाँ कौन करे
नामा-ए-शौक़ ग़ज़ल की सूरत छपने को दो अख़बार के बीच