दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच
'इंशा' जी क्या माल लिए बैठे हो तुम बाज़ार के बीच
पीना-पिलाना ऐन गुनह है जी का लगाना ऐन हवस
आप की बातें सब सच्ची हैं लेकिन भरी बहार के बीच
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
मिन्नत-ए-क़ासिद कौन उठाए शिकवा-ए-दरबाँ कौन करे
नामा-ए-शौक़ ग़ज़ल की सूरत छपने को दो अख़बार के बीच
ग़ज़ल
दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा