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दिल से या गुल्सिताँ से आती है | शाही शायरी
dil se ya gulsitan se aati hai

ग़ज़ल

दिल से या गुल्सिताँ से आती है

रईस अमरोहवी

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दिल से या गुल्सिताँ से आती है
तेरी ख़ुश्बू कहाँ से आती है

कितनी मग़रूर है नसीम-ए-सहर
शायद उस आस्ताँ से आती है

ख़ुद वही मीर-ए-कारवाँ तो नहीं
बू-ए-ख़ुश कारवाँ से आती है

उन के क़ासिद का मुंतज़िर हूँ मैं
ऐ अजल! तू कहाँ से आती है

शिकवा कैसा कि हर बला ऐ दोस्त!
जानता हूँ जहाँ से आती है

हो चुकीं आज़माइशें इतनी
शर्म अब इम्तिहाँ से आती है

ऐन दीवानगी में याद आया!
अक़्ल इश्क़-ए-बुताँ से आती है

तेरी आवाज़ गाह गाह ऐ दोस्त!
पर्दा-ए-साज़-ए-जाँ से आती है

दिल से मत सरसरी गुज़र कि 'रईस'
ये ज़मीं आसमाँ से आती है