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दिल से ताअत तिरी नहीं होती | शाही शायरी
dil se taat teri nahin hoti

ग़ज़ल

दिल से ताअत तिरी नहीं होती

जिगर बरेलवी

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दिल से ताअत तिरी नहीं होती
हम से अब बंदगी नहीं होती

ऐसी कुछ बे-दिली सी 'ग़ालिब' है
कि तिरी याद भी नहीं होती

दिल न जब तक हो एक शोला-ए-इश्क़
ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं होती

हैफ़ वह जस से शिद्दत-ए-ग़म में
ख़्वाहिश-ए-मर्ग भी नहीं होती

रास आती नहीं कोई तदबीर
यास-ए-जावेद भी नहीं होती

ज़ब्त-ए-ग़म भी मुहाल है हम से
और फ़रियाद भी नहीं होती

दिल-परस्ती ख़ुदा-परस्ती है
ख़ुद-परस्ती ख़ुदी नहीं होती

अल-हज़र तिश्नगी-ए-इश्क़ 'जिगर'
हाए तस्कीन ही नहीं होती