EN اردو
दिल से निकली हुई हर आह की तासीर में आ | शाही शायरी
dil se nikli hui har aah ki tasir mein aa

ग़ज़ल

दिल से निकली हुई हर आह की तासीर में आ

अनवर कैफ़ी

;

दिल से निकली हुई हर आह की तासीर में आ
माँग ले रब से मुझे और मिरी तक़दीर में आ

राब्ता मुझ से दिल-ओ-जाँ का अगर रखना है
मुझ से वाबस्ता किसी हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में आ

मैं बनाता हूँ तख़य्युल के क़लम से पैकर
मेरी तहरीर मिरे दर्द की तस्वीर में आ

ये भी मुमकिन है कसाफ़त ही दिलों की धुल जाए
मेरी आँखों से जो बहता है इसी नीर में आ

ढल न जाए कहीं ये हुस्न-ए-सुख़न ऐ 'अनवर'
दिल ये कहता है कि इस ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर में आ