दिल से निकाल यास कि ज़िंदा हूँ मैं अभी
होता है क्यूँ उदास कि ज़िंदा हूँ मैं अभी
मायूसियों की क़ैद से ख़ुद को निकाल कर
आ जाओ मेरे पास कि ज़िंदा हूँ मैं अभी
आ कर कभी तू दीद से सैराब कर मुझे
मरती नहीं है प्यास कि ज़िंदा हूँ मैं अभी
मेहर-ओ-वफ़ा ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत गुदाज़ दिल
सब कुछ है मेरे पास कि ज़िंदा हूँ मैं अभी
लौटेंगे तेरे आते ही फिर दिन बहार के
रहती है दिल में आस कि ज़िंदा हूँ मैं
'नायाब' शाख़-ए-चश्म में खिलते हैं अब भी ख़्वाब
सच है तिरा क़यास कि ज़िंदा हूँ मैं अभी
ग़ज़ल
दिल से निकाल यास कि ज़िंदा हूँ मैं अभी
जहाँगीर नायाब