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दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ | शाही शायरी
dil se kya puchhta hai zulf-e-girah-gir se puchh

ग़ज़ल

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

इम्दाद इमाम असर

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दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ
अपने दीवाने का अहवाल तू ज़ंजीर से पूछ

मेरी जाँ-बाज़ी के जौहर नहीं रौशन तुझ पर
कुछ खुले हैं तिरी शमशीर पे शमशीर से पूछ

पुर्सिश-ए-हाल को जाती है कहाँ ऐ लैला
क़ैस की शक्ल है क्या क़ैस की तस्वीर से पूछ

वाक़िफ़-ए-राज़ नहीं पीर-ए-मुग़ाँ सा कोई
है दिला पूछना जो कुछ तुझे उस पीर से पूछ

वाक़िफ़-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार नहीं हर कोई
क्या मज़ा ग़म में है ये आशिक़-ए-दिल-गीर से पूछ

गर्मी-ए-शौक़ नहीं है तो दहन में ऐ शम्अ
किस लिए तेरी ज़बाँ लेता है गुल-गीर से पूछ

उल्टी क्यूँ पड़ती है तदबीर ये हम क्या जानें
कौन उलट देता है इस राज़ को तदबीर से पूछ

मुझ से ऐ दावर-ए-महशर है ये पुर्सिश कैसी
पूछना है तुझे जो कुछ मिरी तक़दीर से पूछ

यूँ तो उस्ताद-ए-फ़न-ए-शेर बहुत से गुज़रे
किस को कहते हैं ग़ज़ल-गोई 'असर' 'मीर' से पूछ