दिल से जब लौ लगी नहीं होती
आँख भी शबनमी नहीं होती
जिस को ग़म ने हयात बख़्शी हो
हर ख़ुशी वो ख़ुशी नहीं होती
काँटे जब तक जवाँ नहीं होते
शाख़ गुल की हरी नहीं होती
ख़ास अंदाज़ जब सुख़न का न हो
शाएरी शाएरी नहीं होती
लब पे जबरन हँसी भी लाते हैं
दर्द में कुछ कमी नहीं होती
ग़ज़ल
दिल से जब लौ लगी नहीं होती
दीद राही