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दिल से जब लौ लगी नहीं होती | शाही शायरी
dil se jab lau lagi nahin hoti

ग़ज़ल

दिल से जब लौ लगी नहीं होती

दीद राही

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दिल से जब लौ लगी नहीं होती
आँख भी शबनमी नहीं होती

जिस को ग़म ने हयात बख़्शी हो
हर ख़ुशी वो ख़ुशी नहीं होती

काँटे जब तक जवाँ नहीं होते
शाख़ गुल की हरी नहीं होती

ख़ास अंदाज़ जब सुख़न का न हो
शाएरी शाएरी नहीं होती

लब पे जबरन हँसी भी लाते हैं
दर्द में कुछ कमी नहीं होती