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दिल से हर-दम हमें आवाज़-बुका आती है | शाही शायरी
dil se har-dam hamein aawaz-e-buka aati hai

ग़ज़ल

दिल से हर-दम हमें आवाज़-बुका आती है

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी

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दिल से हर-दम हमें आवाज़-बुका आती है
बंद कानों को भी गिर्या की सदा आती है

दिल से है आँख तक आई असर-ए-गर्मी-ए-शौक़
अश्क हसरत से निगह आबला-पा आती है

गुल हुआ कोई चराग़-ए-सहरी ओ बुलबुल
हाथ मलती हुई पत्तों से सदा आती है

आईना साफ़ सिकंदर को दिखाया तू ने
ख़ूब ऐ ख़िज़्र तुझे राह बता आती है

छू लिया धोके से दामान-ए-सबा तू ने तो किया
ग़ुंचा-ए-गुल कहीं मुट्ठी में हवा आती है

जिस क़दर वस्ल-ए-बुताँ का तुम्हें रहता है फ़िराक़
ऐ 'नसीम' उतनी कभी याद-ए-ख़ुदा आती है