दिल से हर-दम हमें आवाज़-बुका आती है
बंद कानों को भी गिर्या की सदा आती है
दिल से है आँख तक आई असर-ए-गर्मी-ए-शौक़
अश्क हसरत से निगह आबला-पा आती है
गुल हुआ कोई चराग़-ए-सहरी ओ बुलबुल
हाथ मलती हुई पत्तों से सदा आती है
आईना साफ़ सिकंदर को दिखाया तू ने
ख़ूब ऐ ख़िज़्र तुझे राह बता आती है
छू लिया धोके से दामान-ए-सबा तू ने तो किया
ग़ुंचा-ए-गुल कहीं मुट्ठी में हवा आती है
जिस क़दर वस्ल-ए-बुताँ का तुम्हें रहता है फ़िराक़
ऐ 'नसीम' उतनी कभी याद-ए-ख़ुदा आती है
ग़ज़ल
दिल से हर-दम हमें आवाज़-बुका आती है
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी