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दिल संग नहीं है कि सितमगर न भर आता | शाही शायरी
dil sang nahin hai ki sitamgar na bhar aata

ग़ज़ल

दिल संग नहीं है कि सितमगर न भर आता

इम्दाद इमाम असर

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दिल संग नहीं है कि सितमगर न भर आता
करते न अगर ज़ब्त तो मुँह तक जिगर आता

तू फ़ातिहा-ख़्वानी को अगर क़ब्र पर आता
मरने से मिरे ग़ैर का मतलब न बर आता

ऐ क़ैस अगर दश्त में तू राह पर आता
सौ बार तुझे नाक़ा-ए-लैला नज़र आता

तख़सीस न थी तूर की ऐ हज़रत-ए-मूसा
हर संग में वो नूर-ए-तजल्ली नज़र आता

होती चमन-आरा-ए-अज़ल की जो मशिय्यत
अपने शजर-ए-इश्क़ का वक़्त-ए-समर आता

बे-कार न कर रात बसर मुंतज़री में
आना उसे होता तो वो अब तक 'असर' आता