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दिल सख़्त निढाल हो गया है | शाही शायरी
dil saKHt niDhaal ho gaya hai

ग़ज़ल

दिल सख़्त निढाल हो गया है

शोहरत बुख़ारी

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दिल सख़्त निढाल हो गया है
साँस आना मुहाल हो गया है

तू तेरा विसाल तेरी फ़ुर्क़त
सब ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गया है

वो शौक़ कि था मता-ए-हस्ती
अब जी का वबाल हो गया है

क्या रब्त है मेरा रोज़ ओ शब से
हर लम्हा सवाल हो गया है

जो दर्द भुला दिया था तू ने
वो दर्द बहाल हो गया है

अब चारागरी से फ़ाएदा क्या
आग़ाज़-ए-मआल हो गया है

तय्यार रखो चराग़ अपने
सूरज को ज़वाल हो गया है

ऐ दिल मिरी जान कुछ तो बतला
ये क्या तिरा हाल हो गया है

लाहौर कि अहल-ए-दिल की जाँ था
कूफ़े की मिसाल हो गया है

इस आलम-ए-बे-कसी में 'शोहरत'
जीता हूँ कमाल हो गया है