दिल पुकारा फँस के कू-ए-यार में
रोक रक्खा है मुझे गुलज़ार में
फ़र्क़ क्या मक़्तल में और गुलज़ार में
ढाल में हैं फूल फल तलवार में
लुत्फ़ दुनिया में नहीं तकरार में
लेकिन उन के बोसा-ए-रुख़्सार में
था जो शब को साया-ए-रुख़्सार में
ताज़गी कितनी है बासी हार में
फ़र्त-ए-मायूसी ने मुर्दा हसरतें
दफ़्न कर दी हैं दिल-ए-बीमार में
शाद हो जाती है दुनिया ऐ रूपे
क्या करामत है तिरी झंकार में
आतिश-ए-उल्फ़त की धड़कन बढ़ गई
गिर पड़ा दिल शोला-ए-रुख़्सार में
आह के क़ब्ज़े में है तासीर या
तेग़ है दस्त-ए-अलम-बरदार में
नश्तर-ए-मिज़्गाँ की तेज़ी के सबब
एक काँटा है दिल-ए-पुर-ख़ार में
आब-ए-पैकाँ पास है लेकिन नसीब
फिर भी ख़ुश्की है लब-ए-सोफ़ार में
ख़ैर हो 'परवीं' दिल-ए-मुज़्तर मिरा
ले चला फिर कूचा-ए-दिलदार में
ग़ज़ल
दिल पुकारा फँस के कू-ए-यार में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़