दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है
दोस्तो वो तो क़यामत की घड़ी होती है
जिस तरफ़ जाएँ जहाँ जाएँ भरी दुनिया में
रास्ता रोके तिरी याद खड़ी होती है
जिस ने मर मर के गुज़ारी हो ये उस से पूछो
हिज्र की रात भला कितनी कड़ी होती है
हँसते होंटों से भी झड़ते हैं फ़साने ग़म के
ख़ुश्क आँखों में भी सावन की झड़ी होती है
जब कोई शख़्स कहीं ज़िक्र-ए-वफ़ा करता है
दिल को ऐ दोस्तो तकलीफ़ बड़ी होती है
इस तरह बैठे हैं वो आज मिरी महफ़िल में
जिस तरह शीशे में तस्वीर जड़ी होती है
ग़ज़ल
दिल पे जब दर्द की उफ़्ताद पड़ी होती है
अहमद राही