दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
हश्र-सामाँ है न जाने किस लिए
पुर-सुकूँ गहराइयों में ज़ब्त की
शोर-ए-तूफ़ाँ है न जाने किस लिए
लाख आबाद-ए-तमन्ना हो के दिल
फिर भी वीराँ है न जाने किस लिए
मेरी बर्बादी पे मेरा हर नफ़स
ज़हर-ख़ंदाँ है न जाने किस लिए
तिश्ना-ए-हिम्मत जो था ज़ौक़-ए-फ़ना
आज आसाँ है न जाने किस लिए
ख़ाली अज़ इल्लत नहीं उन का करम
मुझ पे एहसाँ है न जाने किस लिए
देखिए गिरती है ये बिजली कहाँ
वो पशीमाँ है न जाने किस लिए
नौ-ए-इंसाँ फ़स्ल-ए-आज़ादी में भी
पा-ब-जौलाँ है न जाने किस लिए
ग़ज़ल
दिल परेशाँ है न जाने किस लिए
वामिक़ जौनपुरी