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दिल पर सितम हज़ार करे बेवफ़ा के लब | शाही शायरी
dil par sitam hazar kare bewafa ke lab

ग़ज़ल

दिल पर सितम हज़ार करे बेवफ़ा के लब

शमशाद शाद

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दिल पर सितम हज़ार करे बेवफ़ा के लब
बर्छी कभी कटार लगे दिलरुबा के लब

गुफ़्त-ओ-शुनीद में बड़े बेबाक हैं मगर
देखा मुझे तो खुल न सके लब-कुशा के लब

गुफ़्तार-ओ-आन-बान का आलम न पूछिए
ख़ुश-रंग-ओ-जाँ-फ़ज़ा हैं मिरे हम-नवा के लब

हो जाए पल में ख़ाक वो जिस को ये चूम लें
जलते हुए शरारे हैं जान-ए-अदा के लब

बोसा लिया तो हुस्न ने शर्मा के यूँ कहा
रौशन किए हैं आप ने मेहर-ओ-वफ़ा के लब

मासूमियत तो देखिए बा'द-ए-शब-ए-ज़िफ़ाफ़
मा'शूक़ शिकवा-संज हुआ है दिखा के लब

बाग़ों से हम जो गुज़रे तो फूलों ने दी सदा
कितने हसीं हैं 'शाद' तिरी दिलरुबा के लब