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दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था | शाही शायरी
dil par kisi ki baat ka aisa asar na tha

ग़ज़ल

दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था

आलोक मिश्रा

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दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था
पहले मैं इस तरह से कभी दर-ब-दर न था

चारों तरफ़ थे धूप के जंगल हरे-भरे
सहरा में कोई मेरे अलावा शजर न था

तारे भी शब की झील में ग़र्क़ाब हो गए
मेरी उदासियों का कोई हम-सफ़र न था

फ़ुर्क़त की आँच थी न तिरी याद की तपिश
दिल सर्द पड़ रहा था कहीं इक शरर न था

कल शब न जाने कौन से ग़म थे उफान पर
अश्कों से इस क़दर मैं कभी तर-ब-तर न था