दिल पर गहरा नक़्श है साथी लाख तिरी दानाई का 
सात समुंदर भी तो न पाएँ राज़ मिरी गहराई का 
चश्मा-ए-ख़ूँ में डूब गई बारात सुहाने तारों की 
बोझल पलकों पर गहना या चाँद मिरी तन्हाई का 
झूम रहे हैं काले बादल दरस की प्यासी आँखों में 
काजल बन कर फैल गया है दाग़ मिरी रुस्वाई का 
कितना है आनंद तिरे इस धीमे धीमे लहजे में 
तेरे धीरज से निखरा है रंग मिरी रानाई का 
मेरे दिल से पूछे कोई क़द्र उभरते सूरज की 
मेरी आँख से देखे कोई रूप मिरे सौदाई का 
संदल जैसी रंगत पर क़ुर्बान सुनहरी धूप करूँ 
रौशन माथे पर मैं वारूँ सारा हुस्न ख़ुदाई का 
मेरा बिखरा बिखरा तन-मन सिमट गया किसी चाहत से 
जान गई हूँ भेद मैं तेरी बाहोँ की गीराई का
        ग़ज़ल
दिल पर गहरा नक़्श है साथी लाख तिरी दानाई का
इरफ़ाना अज़ीज़

