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दिल ओ नज़र पे तिरे बाद क्या नहीं गुज़रा | शाही शायरी
dil o nazar pe tere baad kya nahin guzra

ग़ज़ल

दिल ओ नज़र पे तिरे बाद क्या नहीं गुज़रा

शहज़ाद अहमद

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दिल ओ नज़र पे तिरे बाद क्या नहीं गुज़रा
तुझे गुमाँ कि कोई हादसा नहीं गुज़रा

वहाँ वहाँ भी मुझे ले गया है शौक़-ए-सफ़र
कभी जहाँ से कोई क़ाफ़िला नहीं गुज़रा

अगरचे तू भी नहीं अब दिलों की दुनिया में
मगर यहाँ कोई तेरे सिवा नहीं गुज़रा

हम अब तो उस को भी इक हादसा समझते हैं
ख़याल था कि कोई हादसा नहीं गुज़रा

कभी कभी नज़र आई उमीद भी 'शहज़ाद'
हमारा वक़्त कभी एक सा नहीं गुज़रा