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दिल-ओ-नज़र को लहू में डुबोना आता है | शाही शायरी
dil-o-nazar ko lahu mein Dubona aata hai

ग़ज़ल

दिल-ओ-नज़र को लहू में डुबोना आता है

असअ'द बदायुनी

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दिल-ओ-नज़र को लहू में डुबोना आता है
न अब हँसी हमें आए न रोना आता है

हवा के हाथ चराग़ों से खेलते हैं यूँही
कि हाथ बच्चों के जैसे खिलौना आता है

हम अहल-ए-ज़र के दरों पर क़दम नहीं रखते
गदा-ए-ख़ाक हैं मिट्टी पे सोना आता है

ख़ुमार-ए-दर-ब-दरी चैन से न रहने दे
जो ख़्वाब आता है अक्सर सलोना आता है

ग़ज़ल के शे'र हैं मुफ़्रद मगर वो शाइ'र है
जिसे सब एक लड़ी में पिरोना आता है