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दिल-ओ-दीदा पर क्या इजारा हमारा | शाही शायरी
dil-o-dida par kya ijara hamara

ग़ज़ल

दिल-ओ-दीदा पर क्या इजारा हमारा

मीर अली औसत रशक

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दिल-ओ-दीदा पर क्या इजारा हमारा
न सहरा हमारा न दरिया हमारा

फ़लक भी जो चाहे तो अच्छे न होंगे
हमारा अदू है मसीहा हमारा

गरेबान वहशत ने फाड़ा तो क्या ग़म
ख़ुदा रखने वाला है पर्दा हमारा

मोहब्बत निभे बुत कि हो ख़ाना-ए-दिल
हमारा तुम्हारा तुम्हारा हमारा

हम ऐ 'रश्क' मिटते रहे आबरू पर
रहा नक़्श-बर-आब नक़्शा हमारा