दिल-ओ-दीदा पर क्या इजारा हमारा
न सहरा हमारा न दरिया हमारा
फ़लक भी जो चाहे तो अच्छे न होंगे
हमारा अदू है मसीहा हमारा
गरेबान वहशत ने फाड़ा तो क्या ग़म
ख़ुदा रखने वाला है पर्दा हमारा
मोहब्बत निभे बुत कि हो ख़ाना-ए-दिल
हमारा तुम्हारा तुम्हारा हमारा
हम ऐ 'रश्क' मिटते रहे आबरू पर
रहा नक़्श-बर-आब नक़्शा हमारा
ग़ज़ल
दिल-ओ-दीदा पर क्या इजारा हमारा
मीर अली औसत रशक