दिल नीं पकड़ी है यार की सूरत
गुल हुआ है बहार की सूरत
कोई गुल-रू नहीं तुम्हारी शक्ल
हम ने देखीं हज़ार की सूरत
तुझ गली बीच हो गया है दिल
दीदा-ए-इंतिज़ार की सूरत
हुस्न का मलक हम नीं सैर किया
कहीं देखी न प्यार की सूरत
अब ज़माना सभी तरह बिगड़ा
क्या बने रोज़गार की सूरत
वस्ल के बीच हिज्र जा है भूल
जूँ नशे में ख़ुमार की सूरत
इस ज़माने की दोस्ती के तईं
कुछ नहीं ए'तिबार की सूरत
कुछ ठहरती नहीं कि क्या होगी
इस दिल-ए-बे-क़रार की सूरत
मुब्तज़िल और ख़राब हो कर के
अपनी लौंडे नीं ख़्वार की सूरत
'आबरू' देख यार का ब्रो-दोश
दिल हुआ है कनार की सूरत
ग़ज़ल
दिल नीं पकड़ी है यार की सूरत
आबरू शाह मुबारक