दिल ने फ़रेब इश्क़ में खाए कहाँ कहाँ
दरमांदगी में अश्क बहाए कहाँ कहाँ
सज्दे कहाँ कहाँ न किए राह-ए-शौक़ में
का'बे क़दम क़दम पे बसाए कहाँ कहाँ
बज़्म-ए-बहार-ए-कुंज-ए-हरम सेहन-ए-मय-कदा
दीवानगी ने हश्र उठाए कहाँ कहाँ
हर मंज़र-ए-बहार में तेरा जमाल है
वहशत सर-ए-नियाज़ झुकाए कहाँ कहाँ
आग़ाज़-ए-ग़म उरूज-ए-जुनूँ इंतिहा-ए-शौक़
वो ज़िंदगी में याद न आए कहाँ कहाँ
'मज़हर' शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत न धुल सकी
हम ने चराग़-ए-दाग़ जलाए कहाँ कहाँ
ग़ज़ल
दिल ने फ़रेब इश्क़ में खाए कहाँ कहाँ
सय्यद मज़हर गिलानी