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दिल-नगर में भी आइए साहिब | शाही शायरी
dil-nagar mein bhi aaiye sahib

ग़ज़ल

दिल-नगर में भी आइए साहिब

शहज़ाद नय्यर

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दिल-नगर में भी आइए साहिब
वर्ना आँखों से जाइए साहिब

जी उठेंगे हज़ार-हा मंज़र
सिर्फ़ पलकें उठाइए साहिब

मैं गिरा तो ज़माना उट्ठेगा
बात दिल में बिठाइए साहिब

इस जगह टूट-फूट रहती है
मेरे दिल में न आइए साहिब

ख़ाक हैं आप की हथेली पर
जैसे चाहे उड़ाइए साहिब

मैं न बोला तो कौन बोलेगा
आप ख़ुद ही बताइए साहिब

हम से दुनिया तो रूठ बैठी है
आप ही मान जाइए साहिब