दिल न दीवाना हो ये उस को गवारा भी नहीं
चाक दामान-ओ-गिरेबाँ हों ये ईमा भी नहीं
हम लिए जाएँगे कुछ उस का भरोसा भी नहीं
जान दे दें ये मोहब्बत का तक़ाज़ा भी नहीं
बे-नियाज़ आप से हो जाएँ ये होता भी नहीं
दिल ही जब देखते हैं कोई तमन्ना भी नहीं
जान बे-ताब सी रहती है कि हो जाए निसार
आँख भर कर अभी हम ने उसे देखा भी नहीं
ज़ख़्म बढ़ता भी नहीं फ़ैसला जिस से हो जाए
तीर वो दिल में लगा है कि निकलता भी नहीं
बे-हिजाबी भी नहीं वो कि जो होश उड़ जाएँ
होश रह जाएँ ठिकाने ही दर-पर्दा भी नहीं
चैन पड़ता ही नहीं है किसी करवट हम को
ख़ार सीने में छुपा हूँ कोई ऐसा भी नहीं
फिर भी दिल है कि उसी पर हुए जाता है निसार
आँख उठा कर कभी जिस ने हमें देखा भी नहीं
ज़र्रे ज़र्रे पे बहार आ गई दिल में भी बहार
जज़्बा-ए-शौक़ हमारा अभी भड़का भी नहीं
पाँव रखते भी नहीं आप बढ़े जाते हैं
हम को उस कूचे का सौदा हो तो सौदा भी नहीं
लुत्फ़ होता तो यही था कि न होते बर्बाद
हम जो बर्बाद हुए तो कोई शिकवा भी नहीं
शिकवा-ए-जौर तो करते हैं मगर सच तो ये है
लुत्फ़ हम पर हो 'जिगर' हम ने ये चाहा भी नहीं
ग़ज़ल
दिल न दीवाना हो ये उस को गवारा भी नहीं
जिगर बरेलवी