दिल मुज़्महिल है तेरी नवाज़िश के बावजूद
ये सरज़मीं उदास है बारिश के बावजूद
ख़ीरा न कर सके निगह-ए-इम्तियाज़ को
झूटे नगीं नुमूद-ओ-नुमाइश के बावजूद
एक फूल भी चमन में न दिल खोल कर हँसा
शबनम के आँसुओं की गुज़ारिश के बावजूद
क्या क़हर है कि झूट में मिलती है आफ़ियत
सच बोलना मुहाल है ख़्वाहिश के बावजूद
मेरा वक़ार ज़ीस्त न मजरूह कर सके
दुश्मन हज़ार हीला-ओ-साज़िश के बावजूद
अपनी ग़लत रविश को न तब्दील कर सके
कुछ दोस्त बार बार गुज़ारिश के बावजूद
बरख़ुद ग़लत कभी न हुए ज़िंदगी में 'लैस'
दुनिया-ए-फ़न में दाद-ओ-सताइश के बावजूद

ग़ज़ल
दिल मुज़्महिल है तेरी नवाज़िश के बावजूद
लैस क़ुरैशी