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दिल मुझे कुफ़्र आश्ना न करे | शाही शायरी
dil mujhe kufr aashna na kare

ग़ज़ल

दिल मुझे कुफ़्र आश्ना न करे

नादिर लखनवी

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दिल मुझे कुफ़्र आश्ना न करे
बंदा बुत का हूँ मैं ख़ुदा न करे

काटती है पतंग ग़ैरों की
हम से तक्कल तिरे उड़ा न करे

सुल्ह मंज़ूर है अगर तुम को
आँख अग़्यार से लड़ा न करे

क्यूँ न आँचल दुपट्टे का लटके
हो परी-ज़ाद पर लगा न करे

है वो बुत अब तो महव-ए-यकताई
डर ख़ुदा का न हो तो क्या न करे

पढ़े 'नादिर' जो शेर-ए-तर्ज़-ए-जदीद
सुन के क्यूँ ख़ल्क़ वाह-वा न करे