EN اردو
दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया | शाही शायरी
dil mera tir-e-sitam-gar ka nishana ho gaya

ग़ज़ल

दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

;

दिल मिरा तीर-ए-सितमगर का निशाना हो गया
आफ़त-ए-जाँ मेरे हक़ में दिल लगाना हो गया

हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में
मिस्ल-ए-मजनूँ हाल मेरा भी फ़साना हो गया

ख़ाकसारी ने दिखाया ब'अद मुर्दन भी उरूज
आसमाँ तुर्बत पर मेरे शामियाना हो गया

ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से ज़रा देखो तो कब चौंके हैं हम
क़ाफ़िला मुल्क-ए-अदम को जब रवाना हो गया

फ़स्ल-ए-गुल में भी रिहाई की न कुछ सूरत हुई
क़ैद में सय्याद मुझ को इक ज़माना हो गया

दिल जलाया सूरत-ए-परवाना जब से इश्क़ में
फ़र्ज़ तब से शम्अ पर आँसू बहाना हो गया

आज तक ऐ दिल जवाब-ए-ख़त न भेजा यार ने
नामा-बर को भी गए कितना ज़माना हो गया

पास-ए-रुस्वाई से देखो पास आ सकते नहीं
रात आई नींद का तुम को बहाना हो गया

हो परेशानी सर-ए-मू भी न ज़ुल्फ़-ए-यार को
इस लिए मेरा दिल-ए-सद-चाक शाना हो गया

ब'अद मुर्दन कौन आता है ख़बर को ऐ 'रसा'
ख़त्म बस कुंज-ए-लहद तक दोस्ताना हो गया