दिल मिरा ख़ूगर-ए-आलाम हुआ जाता है
अब सितम भी तिरा इनआ'म हुआ जाता है
ज़ब्त-ए-ग़म मौत का पैग़ाम हुआ जाता है
दिल की बातों में मिरा काम हुआ जाता है
निस्बत-ए-ख़ास तो है ज़ुल्म पे यूँ शाद थे हम
ये भी अंदाज़ तिरा आम हुआ जाता है
तेरी मख़मूर निगाहों के तसद्दुक़ में कोई
वाक़िफ़-ए-राज़-ए-मय-ओ-जाम हुआ जाता है
तर्क-ए-उल्फ़त से जुनूँ मुझ को हुआ यूँ ही सही
हुस्न क्यूँ लर्ज़ा-बर-अंदाम हुआ जाता है
दिल जो था साग़र-ए-सहबा-ए-सुकूँ ऐ 'नख़्शब'
मरकज़-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हुआ जाता है
ग़ज़ल
दिल मिरा ख़ूगर-ए-आलाम हुआ जाता है
नख़्शब जार्चवि