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दिल मिरा ख़ूगर-ए-आलाम हुआ जाता है | शाही शायरी
dil mera KHugar-e-alam hua jata hai

ग़ज़ल

दिल मिरा ख़ूगर-ए-आलाम हुआ जाता है

नख़्शब जार्चवि

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दिल मिरा ख़ूगर-ए-आलाम हुआ जाता है
अब सितम भी तिरा इनआ'म हुआ जाता है

ज़ब्त-ए-ग़म मौत का पैग़ाम हुआ जाता है
दिल की बातों में मिरा काम हुआ जाता है

निस्बत-ए-ख़ास तो है ज़ुल्म पे यूँ शाद थे हम
ये भी अंदाज़ तिरा आम हुआ जाता है

तेरी मख़मूर निगाहों के तसद्दुक़ में कोई
वाक़िफ़-ए-राज़-ए-मय-ओ-जाम हुआ जाता है

तर्क-ए-उल्फ़त से जुनूँ मुझ को हुआ यूँ ही सही
हुस्न क्यूँ लर्ज़ा-बर-अंदाम हुआ जाता है

दिल जो था साग़र-ए-सहबा-ए-सुकूँ ऐ 'नख़्शब'
मरकज़-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हुआ जाता है