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दिल मिरा देख देख जलता है | शाही शायरी
dil mera dekh dekh jalta hai

ग़ज़ल

दिल मिरा देख देख जलता है

क़ाएम चाँदपुरी

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दिल मिरा देख देख जलता है
शम्अ का किस पे दिल पिघलता है

हम-नशीं ज़िक्र-ए-यार कर कि कुछ आज
इस हिकायत से जी बहलता है

दिल मिज़ा तक पहुँच चुका जूँ अश्क
अब सँभाले से कब सँभलता है

साक़िया दौर क्या करे है तमाम
आप ही अब ये दौर चलता है

अपने आशिक़ की सोख़्त पर प्यारे
कभू कुछ दिल तिरा भी जलता है

देख कैसा पतंग की ख़ातिर
शोला-ए-शम्अ हाथ मलता है

आज 'क़ाएम' के शेर हम ने सुने
हाँ इक अंदाज़ तो निकलता है