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दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ | शाही शायरी
dil mein ye ek Dar hai barabar bana hua

ग़ज़ल

दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ

गोविन्द गुलशन

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दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ
मिट्टी में मिल न जाए कहीं घर बना हुआ

इक लफ़्ज़ बेवफ़ा कहा उस ने फिर इस के बअ'द
मैं उस को देखता रहा पत्थर बना हुआ

जब आँसुओं में बह गए यादों के सारे नक़्श
आँखों में कैसे रह गया मंज़र बना हुआ

लहरो! बताओ तुम ने उसे क्यूँ मिटा दिया
ख़्वाबों का इक महल था यहाँ पर बना हुआ

वो क्या था और तुम ने उसे क्या बना दिया
इतरा रहा है क़तरा समुंदर बना हुआ