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दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे | शाही शायरी
dil mein utroge to ek ju-e-wafa paoge

ग़ज़ल

दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे

हसन नईम

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दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे
मौज-दर-मौज समुंदर का पता पाओगे

मैं तो खो जाऊँगा तन्हाई-ए-जंगल में कहीं
तुम भरे घर में कहाँ मुझ को भला पाओगे

दिल से बे-साख़्ता उमडे हैं बढ़ाओ कफ़-ए-दस्त
आज आँसू को भी हम-रंग-ए-हिना पाओगे

आग ही आग सही ख़्वाब में जल कर देखो
इस जहन्नुम में भी जन्नत की हवा पाओगे

ग़म उठाने का ये अंदाज़ बताता है 'नईम'
इक न इक रोज़ वफ़ाओं का सिला पाओगे