दिल में सौ आरमान रखता हूँ
प्यारे आख़िर मैं जान रखता हूँ
वाह-री अक़्ल तुझ से दुश्मन से
दोस्ती का गुमान रखता हूँ
सब्र छुट दिल सब और बातों मैं
क़ाबिल-ए-इम्तिहान रखता हूँ
आह तेरे भी ध्यान में कुछ है
किस क़दर तेरा ध्यान रखता हूँ
तुझ से हर बार मिल के मैं बे-सब्र
न मलूँ फिर ये ठान रखता हूँ
सिर्फ़ मैं तो 'असर' बिसान-ए-जरस
आह-ओ-नाला बयान रखता हूँ
ग़ज़ल
दिल में सौ आरमान रखता हूँ
मीर असर