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दिल में सौ आरमान रखता हूँ | शाही शायरी
dil mein sau aarman rakhta hun

ग़ज़ल

दिल में सौ आरमान रखता हूँ

मीर असर

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दिल में सौ आरमान रखता हूँ
प्यारे आख़िर मैं जान रखता हूँ

वाह-री अक़्ल तुझ से दुश्मन से
दोस्ती का गुमान रखता हूँ

सब्र छुट दिल सब और बातों मैं
क़ाबिल-ए-इम्तिहान रखता हूँ

आह तेरे भी ध्यान में कुछ है
किस क़दर तेरा ध्यान रखता हूँ

तुझ से हर बार मिल के मैं बे-सब्र
न मलूँ फिर ये ठान रखता हूँ

सिर्फ़ मैं तो 'असर' बिसान-ए-जरस
आह-ओ-नाला बयान रखता हूँ