EN اردو
दिल में रक्खा था शरार-ए-ग़म को आँसू जान के | शाही शायरी
dil mein rakkha tha sharar-e-gham ko aansu jaan ke

ग़ज़ल

दिल में रक्खा था शरार-ए-ग़म को आँसू जान के

ज़ुहैर कंजाही

;

दिल में रक्खा था शरार-ए-ग़म को आँसू जान के
हाँ मगर देखे अजब अंदाज़ इस तूफ़ान के

अपनी मजबूरी के आईने में पहचाना तुझे
यूँ तो कितने ही वसीले थे तिरी पहचान के

ज़ख़्म ख़ूँ-आलूद हैं आँसू धुआँ देते हुए
ये सुहाने से नमूने हैं तिरे एहसान के

दर्द-ओ-ग़म के तपते सहरा की कड़कती धूप में
सो गया हूँ मैं तिरी यादों की चादर तान के

देखिए कब तक हक़ीक़त तक रसाई हो 'ज़ुहैर'
चाँद तारों तक तो जा पहुँचे क़दम इंसान के