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दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं | शाही शायरी
dil mein phir wasl ke arman chale aate hain

ग़ज़ल

दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं

बेख़ुद देहलवी

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दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
मेरे रूठे हुए मेहमान चले आते हैं

उन के आते ही हुआ हसरत-ओ-अरमाँ का हुजूम
आज मेहमान पे मेहमान चले आते हैं

आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई हो
दिल में रह रह के ये अरमान चले आते हैं

उस ने ये कह के मुझे दूर ही से रोक दिया
आप से जान न पहचान चले आते हैं

रूठ बैठे हैं मगर छेड़ चली जाती है
कभी पैग़ाम कभी पान चले आते हैं

ये रहा हज़रत-ए-'बेख़ुद' का मकाँ आओ चलें
अभी दम भर में मिरी जान चले आते हैं