दिल में क्या उस को मिला जान से हम देखते हैं
बल्कि जाँ है वही जब ध्यान से हम देखते हैं
चुपके बैठे हुए हैरान से हम देखते हैं
तुम तो देखो तुम्हें किस शान से हम देखते हैं
दिल निकल जाता है बे-साख़्ता उस दम अपना
दर में जिस दम तुझे दालान से हम देखते हैं
कहते हैं एक तुम्हीं तो नहीं हम पर मरते
सैकड़ों जाते हुए जान से हम देखते हैं
वाँ से मायूस चले तो हैं न पूछो फिर कुछ
पीछे फिर फिर के किस अरमान से हम देखते हैं
क्या गिला आप का जो हम को दिखाए क़िस्मत
आज कुछ और ही सामान से हम देखते हैं
कुछ रुका सा जो उन्हें देखते हैं महफ़िल में
मुँह को एक एक के हैरान से हम देखते हैं
अल्लाह अल्लाह रे ऐ बुत तिरी अफ़्ज़ाइश-ए-हुस्न
तुझ को हर लहज़ा नई आन से हम देखते हैं
हाए क़िस्मत कि अदू कहने को अपना मतलब
मुँह लगाते हैं तिरे कान से, हम देखते हैं
कभी जाने का इरादा जो वो करते हैं 'निज़ाम'
हाए उस वक़्त किस अरमान से हम देखते हैं
ग़ज़ल
दिल में क्या उस को मिला जान से हम देखते हैं
निज़ाम रामपुरी